2 Quotes by अनुपमा सरकार

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    शरारती मन मोहे है, किनमिनाते सप्तऋषि, अविचलित ध्रुव को भी अपनी टेढ़ी मुस्कान से सम्मोहित करता। पर दूसरे ही पल तटस्थ योगी दिखता है, चुप्पी साधे पूरब से पश्चिम की यात्रा पूरी करता। नज़र भर देख लूं तो जाने क्या मंत्र फूंक देता है ये चांद मुझ पर। मन करे, रंग दूं इसके गालों को टेसू की अगन से, शर्माई का लाल छूटे न महीनों तक या हल्दी-चंदन का तिलक कर दूं इसके सलोने माथे पर। केसरिया बांका, ताव दिए घूमे मूंछों पर।

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  • Author अनुपमा सरकार
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    10 बाय 10 के कमरे में दो फुट के रोशनदान से आती रोशनी देखकर गढ़ लेती हूं, गुनगुने ख़्वाब... हाथ बढ़ाकर, खुली आंखों से छू लेती हूं, जगमग आग का गोला... मन की खिन्नता, उंगलियां जला देती है.. पल भर की खुशी, दिल गुदगुदा जाती है... ठन्डे फर्श पर पाँव पटक, गुस्सा शांत करती हूं.. गरम कम्बल में कांपते हाथ छुपा, समेट लेती हूं ऊष्णता.. क्षणभंगुर जीवन को पलकों की आवाजाही सा महसूस करने लगी हूं...

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