अंधकार से सकरात्मकता तक'वक़्त की कमी थी, आँखों में नमी थी.''सपना था या ज़हन था. रूह को न चेन था.' 'होगी कब सुबह आराम सी. की कोशिश पर नाकाम सी.''किसी घड़ी छूट जाना था साथ, बातों में थी वो कैसी बात.''बस यही कर्म था मेरा, खुशियों में जो छाया अँधेरा.''यूँ हुआ प्यार मुझे काल से, और लड़ता रहा सकरात्मकता की ढाल से.'"सफर युहीं गुज़रा, था युहीं गुज़र जाना. अब तलवार की चमक देखेगा ज़माना.'"नोक ना होगी, होगा मुलायम स्पर्श. घटा ना होगी ग़मों की पर होगी ख़ुशी और हर्ष
-Samar Sudha
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