उन दिनों (आज़ादी के पहले) जमींदार और बड़े भूमिपति ग्रामीण जनता के मुख्य शोषक थे इसलिए ग्रामीण जनता की मुक्ति के लिए उनके खिलाफ़ संघर्ष छेड़ना वामपंथी आंदोलन का मुख्य मुद्दा था| जमींदारों और भूमिपतियों की कानूनी समाप्ति के बाद गांवो के शोषण के केंद्रबिंदु बदल गये हैं| उनके खिलाफ़ लड़ने के लिए किसानों को भी बड़े पैमाने पर संगठित करने की जरुरत बढ़ती गयी है|... इस समझदारी के बाद किसान-मजदूर अंतर्विरोध का समाधान सहज लगता है
-Kishen Pattanayak
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