भारतीय समाज में ‘जाति’ एक महत्त्वपूर्ण घटक है। ‘जाति’ पैदा होते ही व्यक्ति की नियति तय कर देती है। पैदा होना व्यक्ति के अधिकार में नहीं होता। यदि होता तो मैं भंगी के घर पैदा क्यों होता? जो स्वयं को इस देश की महान सांस्कृतिक धरोहर के तथाकथित अलमबरदार कहते हैं, क्या वे अपनी मर्जी से उन घरों में पैदा हुए हैं? हाँ, इसे जस्टीफाई करने के लिए अनेक धर्मशास्त्रों का सहारा वे जरूर लेते हैं। वे धर्मशास्त्र जो समता, स्वतंत्रता की हिमायत नहीं करते, बल्कि सामन्ती प्रवृत्तियों को स्थापित करते हैं।
-Omprakash Valmiki
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