पहाड़ों को तिनकों सा बिखरते देखा,आसमानों को पानी सा पिघलते देखा;जो कल था, आज उसका अस्तित्व भी नहीं,जाने कब उड़ा ले जाए किसीको हवा का झोंका!
-Neelam Saxena Chandra
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