कैसे कैसे लोग हमारे जी को जलने आ जाते हैं,अपने अपने ग़म के फ़साने हमें सुनाने आ जाते हैं !मेरे लिए ये गैर हैं और मैं इनके लिए बेगाना हूँ,फिर भी ये एक रस्म-ए-जहां है जिसे निभाने आ जाते हैं !इनसे अलग मैं रह नहीं सकता इस बेदर्द ज़माने में,मेरी ये मजबूरी मुझको याद दिलाने आ जाते हैं !सबकी सुन कर चुप रहते हैं दिल की बात नहीं कहते,आते आते जीने के भी लाख बहाने आ जाते हैं !
-Muneer Niyazi
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