ज्ञानरहित भक्ति ढोंग है, कर्मरहित ज्ञान व्यर्थ है, भक्तिरहित कर्म नीरस होता है और ज्ञानरहित कर्म अँधा होता है। इस प्रकार भक्ति-समन्वित ज्ञानयुक्त निष्काम कर्म ही हमारा आदर्श है।
-Deendayal Upadhyay
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