उड़ चलूँगा मैं एक दिन , तेरे पास ,दोनों पंखों से , जो तूने दिये हैं ,एक संघर्ष तो दूजा मोहब्बत का ।तू धीरे से बढ़ा देना अपनी हथेली ,की मैं तुझमे ही विराम पाऊँ ॥फिर चाहे तुम मुझे लगा लेना सीने से ,या फिर गोद मे बिठा लेना ,या फिर दे देना आदेश उड़ जाने को ,मैं तो बस तेरे इक दीदार को ,खुद को खोकर ही ये उपहार पाऊँ ,की मैं तुझमे ही विराम पाऊँ ॥
-Ananda Shailendra Dev
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