खो देना चाहता हूँ मैं अपनी रंग ,तुम्हारे रंगों में ।होली तो बस बहाना है,अपनी "अहं" रंग छोड़ के,बस तेरे रंग मे रंग जाना है । आओ चलो बैठते हैं , फिर से एक साथ ,की ख्वाइस है,की मैं तुझे देखता रहूँ , की बस तू मुझे देख रहा है । तुम्हारी "बराभय" अदाओं से , मुझे देखती तुम्हारी दोनों नैनों से ,मेरी तो अपनी "अहं" रंग खो जाना है , बस अब तेरे रंग मे रंग जाना है।
-Ananda Shailendra Dev
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